सोमवार, 24 अगस्त 2009

जब सब सपने पूरे हो तो गाँव शहर बन जाएँ .

जब सब सपने पूरे हो तो
गाँव शहर बन जाएँ
पर सरकारी गैरत के नाते
देश किसानो और जवानो के
कंधो पर गुंडे लग रहे है
अपनी अपनी घातें और कनाते
नेता बनकर
चिढा रहे है
जन जन के हिस्से का
खाकर
उनको दिखा रहे है आँखें ?
-रत्नाकर




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