डॉ.लाल रत्नाकर इस गाँव की गलियों ने ही हसना रोना और भागना हमको है सिखलाया . पर छुपना यहाँ बड़ा मुश्किल था लोग सभी घर गाँव के अपने पर कोई पराया, था या यह तब समझ नहीं थी सबका घर अपना घर था
था कोई नहीं पराया चौपालों में धूम चौकड़ी खलिहानों की लूका छुपी पर हमने उनमे खेल खेल में कभी न आग लगाया . खबर छपी थी अखबारों में चाचा के खलिहान जल गए आशा नहीं थी जिनसे उनको उनसे ही भूल हुयी पर सब्र बड़ा था तब भी उनमे जब पता चला भतीजों ने ही अपना करम बिगाड़ा