बुधवार, 17 मार्च 2010

मेरा घर

डॉ.लाल रत्नाकर

मेरे घर के .......................................................
सलामत सपने
बचेंगे कैसे


इनको देखो
घूम रहे बंजारा
बनके जब


सलामत है
इज्जत कहाँ जब
संभाले मन


मनमाना ये
मन विचलित है
संतोष नहीं

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